अलायंस स्कूल ऑफ लिबरल आर्ट्स, भाषा और साहित्य विभाग
एवं केंद्रीय भारतीय भाषा संस्थान, मैसूर, कर्नाटक के संयुक्त तत्त्वावधान में आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी ।

प्रत्येक व्यक्ति की प्रथम भाषा मातृभाषा होती है, परंतु उसका दूसरा पक्ष मानव के सामाजिक संस्कार और सांस्कृतिक चेतना से सम्बद्ध होता है । समाज और भाषाई समुदाय के परिवेश में ही व्यक्ति के अवधारणाओं का ढांचा निर्मित होता है, जिसका संबंध उस समुदाय के जातीय इतिहास, सांस्कृतिक चेतना, व्यवसाय और साहित्यिक संस्कार से होती है । समाज की गतिविधि और मनोवृत्ति पर भाषा,संस्कृति, शिक्षा और साहित्य का व्यापक प्रभाव रहता है । इनके माध्यम से शिक्षापरक तथ्यों की अभिवृद्धि होती है, सांस्कृतिक मूल्यों से हमारी नई पीढ़ी सहजता से परिचित होती चली जाती है तथा आज के संदर्भ में व्यावसायिक दृष्टि से भी अति महत्वपूर्ण है । समाज में कला,भाषा, शिक्षा, व्यवसाय और संस्कृति का समन्वय उसे नव्यता की ओर उन्मुख करता है तथा विकास के मार्ग को भी प्रशस्त करता है । सामाजिक एवं व्यावसायिक सारस्वत अनुसंधान की प्रविधि वर्तमान समय में विशेष महत्व रखती है । इसके माध्यम से नित्य पनपते संस्कार, आचार – व्यवहार, स्थानिकताबोध, सामाजिक दायित्व के प्रति जागरूकता, विभिन्न प्रदेशों की स्थानीय कलाएं, लोक संस्कार तथा भाषा का योगदान नवीन दृष्टिकोण लिए समाज को विकसित व संवर्धित करती है । इस नवीनता को विकसित करने में भाषा और साहित्य अहम भूमिका का निर्वाह करते हैं । इन्हीं विशेष संदर्भों व मुद्दों को ध्यान में रखते हुये अलायंस विश्वविद्यालय, स्कूल ऑफ लिबरल आर्ट्स, भाषा और साहित्य विभाग तथा भारतीय भाषा संस्थान, मैसूर कर्नाटक के संयुक्त तत्वावधान में 29 – 30 जून को द्वि – दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया जा रहा है । संगोष्ठी का विषय है – 'भारतीय भाषा माध्यम से व्यावसायिक एवं कौशल शिक्षा : चुनौतियाँ एवं संभावनाएं' । इस आयोजन के विचार - विमर्श से शिक्षाविद,साहित्य प्रेमी, शोधार्थी और विद्यार्थी अवश्य लाभान्वित होंगे – ऐसा हमारा विश्वास है ।

औचित्य एवं महत्व : इस द्वि – दिवसीय संगोष्ठी के माध्यम से भारत के अलग – अलग राज्यों की स्थानीय कलाओं यथा- ‘मंडला आर्ट’- कर्नाटक, ‘मारवाड़ी, बीकानेरी और हाड़ौती आर्ट’ – राजस्थान, ‘एटिकोप्पाका,कोंडपल्ली गुड़िया,चेनेता और अदद्कम आर्ट’ – आंध्र प्रदेश समेत दक्षिण भारत के अन्य महत्वपूर्ण कलाओं एवं साहित्यक निधियों और लोक भंडार पर चर्चा की जायेगी । इसके माध्यम से बहुमूल्य विचार सामने आयेंगे जो बहुआयाम प्रस्तुत करने वाले होंगे । इस संगोष्ठी में हिन्दी, कन्नड, तमिल,तेलुगु और मलयालम भाषा के विद्वानों को आमंत्रित किया गया है । इसका मुख्य उद्देश्य यह है कि अखिल स्तर पर शिक्षाविदों और विशेषज्ञों को एक पटल पर लाना, उनके ज्ञान, विचार, अनुसंधान के नूतन आयाम से परिचित होना तथा शिक्षा व शोध में नवीनता का संचार करना, भारतीय धरोहर को वैश्विक धरातल पर स्थापित करने के जो माध्यम बनेंगे उनसे परिचित होना तथा चुनौतियों पर समाधान पाना । संगोष्ठी में आमंत्रित विद्वानों के गहन विश्लेषण और वैचारिक अभिव्यक्ति से शैक्षिक/अनुसंधान संस्थाओं के प्रतिभागियों के ज्ञान को अद्यतन किया जा सकेगा । हमारे समाज में भाषा और साहित्य किस प्रकार हमें प्रभावित करते हैं, वसुधैव कुटुंबकम की भावना को साकार करने में तथा परस्पर एकता को बनाए रखने में भारतीय भाषाओं का क्या महत्व है उसे समझ पाएंगे । साथ ही किस प्रकार समाज के हर क्षेत्र में इनकी गहरी पैठ देश की समृद्धि में अतूलनीय भूमिका निभाती है, इसे तुलनात्मक दृष्टि से जाना जा सकेगा । भारतीय संस्कृति साहित्यिक, व्यावसायिक, धार्मिक एवं आध्यात्मिक भावनाओं से सदा अनुप्राणित रही है । इस संगोष्ठी के माध्यम से नई शिक्षा नीति के तहत समाज से विलुप्त होती संस्कृति तथा उसके पुनर्स्थापना में भाषाओं के महत्व को प्रतिपादित किया जायेगा । आज के समय की आवश्यकताओं के अनुरूप अपना अनुकूलन भाषा के लिए जरूरी है परंतु अपनी विरासत को सुरक्षित रखते हुये ही उसके निरंतर विकसित और समृद्ध होने में हमारे समाज का विकास संभव है ।

प्रमुख उद्देश्य :

  • भारतीय ज्ञान प्रणाली को जिन पर अब तक ध्यान नहीं दिया गया है, उन पर विचार विमर्श कर पाठ्यक्रम में जोड़ने पर चर्चा ।
  • भारत की सम्पदा को किस प्रकार नव्य और प्रौद्योगिकी के साथ जोड़कर व्यवसायिक बनाया जा सकता है, इस पर जानकारी देना ।
  • पाठ्यक्रम हेतु सामग्री तैयार करने में भारत के हर राज्य के विद्वानों से संपर्क में आना और बहुभाषी सामग्री तैयार करने के लिए भी विचार विमर्श करना ।
  • अँग्रेजी भाषा के कारण जिन छात्रों को बिजनेस, प्रौद्योगिकी आदि की पढ़ाई भार लगती हो और अब तक सफलता न मिली हो उनके समक्ष एक नया प्लेटफॉर्म रखना जो उनके आत्मविश्वास को बनाए रखने और नई दिशा देने में कारगर हो ।
  • एक ऐसी पुस्तक पाठकों को देना जिसमें विद्वानों के विचार के माध्यम से नई जानकारी, नये विषय पर मिल सके ।
  • शोध छात्रों के लिए नए विषय और क्षेत्र प्रदान करना ।
  • भारतीय भाषाओं के माध्यम से राष्ट्रीय एकता और भाषायी संघर्ष को मिटाने का प्रयत्न करना ।

उप – विषय :

  • व्यावसायिक एवं कौशल शिक्षा : अभिप्राय और अवधारणा ।
  • भारतीय भाषाओं के माध्यम से व्यावसायिक कौशल शिक्षा के अध्ययन के लिए सामग्री तैयार करने की चुनौतियाँ और समाधान ।
  • भारतीय भाषाओं के माध्यम से व्यावसायिक कौशल शिक्षा की संभावनाएं
  • भारत के विभिन्न राज्यों की गुमनाम लोकगाथाएं और उनमें निहित उपयोगी जानकारी : व्यवसायिक एवं कौशल शिक्षण के संदर्भ में।
  • व्यावसायिक शिक्षण हेतु प्रादेशिक चित्रकला और उनके इतिहास व सिद्धान्त को रूपायित करने में भाषाओं की भूमिका ।
  • भाषा व अनुवाद की भूमिका : प्रादेशिक शिल्प कला, हस्तकला और मूर्तिकला बनाने की पद्धति और सैद्धांतिकी को प्रस्तुत करने के संदर्भ में ।
  • व्यावसायिक पाठ्यक्रमों की सरल शिक्षण विधि के स्रोत ।
  • व्यावसायिक विकास की दृष्टि से मीडिया, सिनेमा और साहित्य की भूमिका ।
  • व्यावसायिक दृष्टिकोण से लोकांचल में व्यवहृत भारतीय भाषाएँ और उनकी उपादेयता ।
  • ‘कोस कोस पर बदले पानी चार कोस पर बानी’ की प्रासंगिकता और आवश्यकता ।
  • भारतीय भाषाओं का सह अस्तित्व और उनका अंतर्सबंध ।
  • समाज की अभिवृद्धि में भारतीय साहित्य का अवदान ।

अतिथि विषय विशेषज्ञ

हिन्दी भाषा

  • प्रो. शिशिर पाण्डेय – जगद्गुरू रामभद्राचार्य दिव्याङ्ग विश्वविद्यालय, उत्तर प्रदेश ।
  • प्रो. सदानंद भोसले – सावित्री बाई फुले विश्वविद्यालय, पुणे ।
  • डॉ. प्रदीप त्रिपाठी – सिक्किम केंद्रीय विश्वविद्यालय, सिक्किम ।
  • प्रो. एस वी एस नारायण राजू – तमिलनाडु केंद्रीय विश्वविद्यालय, तमिलनाडु ।
  • डॉ. सी जय शंकर बाबु – पॉण्डीच्चेरी विश्वविद्यालय, पॉण्डीच्चेरी ।
  • डॉ. विवेकानंद तिवारी – जय प्रकाश विश्वविद्यालय, छपरा, बिहार ।

कन्नड भाषा

  • डॉ. टी डी राजण्णा – कर्नाटक केंद्रीय विश्वविद्यालय ।
  • डॉ. एम एस दुर्गा प्रवीण – द्रविड़ विश्वविद्यालय, कुप्पम आंध्र प्रदेश ।
  • डॉ. टी एच लव कुमार – सेंट जोसफ कॉलेज ऑफ कॉमर्स, बंगलूरू ।

तेलुगु भाषा

  • प्रो. एन ए डी पाल – आंध्र विश्वविद्यालय, विशाखापत्नम, आंध्र प्रदेश ।

मलयालम भाषा

  • प्रो. अजीश – संत बर्चमेन कॉलेज, कोट्टयम, केरल ।

तमिल भाषा

  • डॉ. एल रामामूर्ति – केन्द्रीय विश्वविद्यालय, केरला ।

आवश्यक दिनांक

अंतिम दिनांक रजिस्ट्रेशन के लिए : जून 25, 2023
अंतिम दिनांक शोध – सार भेजने के लिए: जून 15, 2023
अंतिम दिनांक पूर्ण लेख भेजने के लिए: जून 25, 2023
शोध पत्र स्वीकृति की सूचना: जून 26, 2023
संगोष्ठी दिनांक: जून 29-30, 2023

लेख व शोध पत्र जमा करने की शर्तें व नियम

  • पेपर का एक सार 15 जून, 2023 को या उससे पहले प्रस्तुत किया जाना चाहिए। सार की लंबाई 300 शब्दों से कम होनी चाहिए।
  • अधिकतम एक लेखक को सह-लेखन की अनुमति है। हालाँकि, दोनों लेखकों को अलग-अलग पंजीकरण करने की आवश्यकता है। सह-लेखन के मामले में, पेपर प्रस्तुत करने के लिए कम से कम एक लेखक को संगोष्ठी में भाग लेना चाहिए। कोई प्रॉक्सी प्रस्तुतियों की अनुमति नहीं है। लेखक और सह-लेखक दोनों को अलग-अलग भुगतान करने की आवश्यकता है।
  • अधिकतम लंबाई: शीर्षक/कवर पेज और संदर्भ सहित 5000 शब्द।
  • मार्जिन: 1" सभी तरफ
  • रेगुलर फॉन्ट: टाइम्स न्यू रोमन, 12 पॉइंट, लाइन स्पेसिंग 1.5 जस्टिफाइड।
  • टाइटल फॉन्ट: टाइम्स न्यू रोमन, 14 पॉइंट्स, बोल्ड, लाइन स्पेसिंग 1.5
  • फ़ुटनोट: टाइम्स न्यू रोमन, 1.0 की रिक्ति के साथ फ़ॉन्ट आकार 10
  • उद्धरण: एमएलए स्टाइल 9वां संस्करण।
  • लेख मूल होना चाहिए और कहीं और प्रकाशन के लिए प्रस्तुत नहीं किया गया हो । लेख के साथ यह घोषणापत्र भेजना अनिवार्य है कि यह कार्य स्वयं का है और साहित्यिक चोरी की नहीं है।

सार और अंतिम शोध पत्र anupama.tiwari@alliance.edu.in ईमेल पर भेजे।
चयनित शोध पत्र पीयर-रिव्यू जर्नल में प्रकाशित किए जाएंगे।

पंजीयन

(प्रति प्रतिभागी)

वर्ग शुल्क
पेशेवर और शिक्षाविद ₹ 1000
विद्यार्थी ₹ 500
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टिप्पणी:

  • लेखक और सह-लेखक दोनों [यदि लागू हो] को अलग-अलग पंजीकरण शुल्क का भुगतान करना होगा और प्रदान किए गए पंजीकरण लिंक के माध्यम से केवल एक बार पंजीकरण कर सकते हैं।
  • एलायंस विश्वविद्यालय के संकाय सदस्यों और छात्रों के लिए कोई पंजीकरण शुल्क नहीं है। हालांकि, पंजीकरण अनिवार्य है।

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संपर्क सूत्र

भाषा और साहित्य विभाग, अलायंस विश्वविद्यालय
चिक्काहागड़े क्रॉस, चन्दापुरा - आनेकल मेन रोड, आनेकल, बेंगलुरु - 562 106, कर्नाटक, भारत। दिशा-मानचित्र प्राप्त करें

दूरभाष संख्या:

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